دُعــــــاءْ
غـانـم الـعــنّـا ز
وقـلـبـي يَـفـيـضُ بـأ زكى دعــاءْ
|
افـيـقُ صبـاحـاً
وكـلّي صـفــاءً
|
|
لِـيـشرحَ صـدري بـأبـهـى ثــنـاءْ
|
أتـانـي بـفـجـرٍ يَـجـوبُ الـفـضـاءَ
|
|
تـقـومُ الـلـيـالي
تُـطـيـلُ الرجـاءْ
|
فـأعـلــمُ أنّـي مَــديــنٌ
لأخــتٍ
|
|
وصَـفــوِ الـحـيـاةِ
وعِــزِ الـبـقـاءْ
|
لـتـدعــو إلـيّ بـخـيـرٍ
عَـمـيــمٍ
|
|
وأشـكـرُ أخـتـي
لــذاك الـوفــاءْ
|
فأحـمـدُ ربّـي لـهــذا
الـعـطــاءِ
|
|
لـتـبـنـي حـيــاةً
بـأرضِ الإخــاءْ
|
تـقــولُ بـأ نّـي
عَـمـلـتُ كـثـيـــراً
|
|
زمـانَ الـحصارِ وسـفــكِ الـدمـاءْ
|
تُـعـيـدُ الـهـناءَ
وتُـنـسي الـعـنـاءَ
|
|
وكان الإلـــهُ
كــريــمَ الــعـطـاءْ
|
وأعـلــمُ أنّـي سَـعـيـتُ
قـلــيــلاً
|
|
لِـقــولٍ صَـدوقٍ
يُـشـيـعُ الـهـنـاءْ
|
لـهـذا سـأ بـقـى فـخـوراّ بـأخـتـي
|
|
ونــثــرٍ أنــيــقٍ
جــمـيـلِ الــرواءْ
|
وشِـعــرٍ جـزيــلٍ
بهـيّ السـنـاءِ
|
|
وعـيـشٍ رغـيـدٍ
وحـسـنِ الـجـزاءْ
|
وأ دعـو لأخـتـي
بـعـمــرٍ مـديــدٍ
|
|
ونـــوّرَ قــلـبَــكِ
ربُّ الــسـمــاءْ
|
فــيـا أمَّ
سَـعْـدٍ رعـا كِ الـرحـيـمُ
|
|
واهــداكِ ما شاء كيـفَ
يــشـاءْ
|
ويـا أمَّ
وَعْـــدٍ جــزا كِ الـكـريـمُ
|
|
وأنــتِ لــــديَّ
مــنَ الأولـــيــاءْ
|
فـأنــتِ لـغـيـري
مـنَ الأتــقـيـاءِ
|
|
ومَـرحـى لأمـثـالِها مـنْ
نـسـاءْ
|
هــنــيـئــاً إلــيـها بـهـذا
الـبَـهــاءِ
|
واطـفـورد - ضـواحـي
لـنـدن - كانون اول/ديسمبر
No comments:
Post a Comment